इंडस्ट्री में महानायक अमिताभ बच्चन के पांच दशक पूरे, 'सात हिंदुस्तानी' से की थी शुरुआत

बॉलीवुड डेस्क. 7 नवंबर की तारीख यानीआज से ठीक 50 साल पहले 1969 में इसी सात नवंबर की तारीख को भारत के सिनेप्रेमियों ने रुपहले परदे पर एक दुबले पतले एक्टर की पहली झलक देखी थी। इस तारीख को रिलीज हुई 'सात हिंदुस्तानी' फिल्म से शुरुआत करने वाले अमिताभ बाद में फिल्म इंडस्ट्री के महानायक साबित हुए। इस मौके पर उनके नायकत्व को आकार देने वाले पांच बड़े निर्देशक दैनिक भास्कर में उनकी इस पांच दशक की जर्नी को पेश कर रहे हैं।

  1. रमेश सिप्पी

    उनके जैसा अविस्मरणीय सफर बेहद कम को नसीब होता है। सत्तर के दशक में तो उनका परचम था। जो भी किरदार उन्हें मिलते रहे, उन्हें अपनी अदाकारी की मदद से ऊंचे स्केल पर ले जाते रहे। आनंद, दीवार, शोले, चुपके चुपके, कभी-कभी, अमर अकबर एंथनी, डॉन से लेकर न जाने कितनी हिट्स इस दशक में उनकी रहीं। इस दशक के शुरू में जंजीर से पहले तक तो उनके बारे में यह कहा जाने लगा था कि वह तो प्रोड्यूसर्स के पैसे डुबोएगा, पर जंजीर के बाद जो एक बार उन्होंने रफ्तार पकड़ी तो मेकर्स को सबसे ज्यादा पैसे उनके चलते ही कमाने को मिले। हालांकि शोले में उनकी कास्टिंग जंजीर और दीवार से पहले हुई थी। यहां तक कि शोले के टाइम उन्होंने फीस तक नहीं डिमांड की थी। हम दोनों का रिश्ता दोस्ती वाला ही रहा। वे कुछ ही साल मुझ से बड़े हैं। हम दोनों ने अपने अपने हिस्से का सफर भी साथ तय किया। वे हर उम्र वालों के साथ उन्हीं के उम्र के बन जाया करते थे। उनकी सफलता में उनकी इस अप्रोच ने भी काफी मदद की है। वे इस सेवेन्टीज के कठिन दौर में अतुल्यनीय उपलब्धि इसलिए हासिल कर सके कि भाषा की समझ और सही भावार्थ के साथ उसके व्यवहार की कुशलता उनमें थी। स्टारडम को उन्होंने कभी सिर पर नहीं चढ़ने दिया। पांव जमीन पर टिका कर रखे। शोले से पहले उनकी थोड़ी बहुत ड्रिंकिंग हैबिट थी, पर उसके बाद उन्होंने उसे बहुत कम कर दिया। बाद में तो इसे पूरी तरह छोड़ ही दिया।

  2. टीनू आनंद

    'जब मैं अमिताभ से पहली बार मिला था तब हम साथ में 'सात हिंदुस्तानी' में काम करने वाले थे। इसमें मैं जो किरदार निभाने वाला था बाद में वही अमिताभ ने निभाया क्योंकि मैं असिस्टेंट डायरेक्टर बनना चाहता था तो मैंने वह रोल छोड़ दिया। उसके बाद अमिताभ काफी पॉपुलर हो गए। 1972 से मैं कालिया की तैयारी कर रहा था, हालांकि वह 1981 में रिलीज हुई क्योंकि मुझे उनके साथ काम करने का मौका ही तब मिला। मैंने उनके स्ट्रगल के दिन देखे हैं। उस दौर में एक बहुत ही फेमस डायरेक्टर ने उनसे कहा था कि तुम्हारे सामने हीरोइन कौन आएगी? 'काम मांगने आए हो तो जाओ अपने पैर काट के आ जाओ।' तब अमिताभ ने सिर्फ इतना कहा था कि 'मैं इनका इतना फेवरेट बन जाऊंगा कि ये मेरे बिना कोई फिल्म ही नहीं बना पाएंगे।' उनका यही जज्बा उनको इतना ऊपर लेकर आया है। 80 के दशक के उनके किस्से सुनाता हूं। कई बार हम दोनों डायलॉग्स को लेकर भिड़ जाते थे। हमारा बॉन्ड बहुत अच्छा था पर हर फिल्म में मेरा झगड़ा होता था पर आखिरकार अमिताभ समझ जाया करते थे और मान भी जाते थे। 'शहशांह' के एक सीन में मैं चाहता था कि वो पुलिस की वर्दी पहनकर आएं और वो चाहते थे कि वो ब्लेजर पहनकर सीन शूट करें। मैंने उनसे कहा कि ये नहीं चलेगा तो उन्होंने शूटिंग बंद कर दी। बाद में मुझे बुलाया और बोले कि मैं आपके डैडी से बात करना चाहता हूं। इसके बाद मेरे फादर ने उनको सेट पर आकर समझाया तो वो मान गए। यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती है कि वो मान जाते हैं।

  3. केसी बोकाडिया

    नब्बे के दौर में मेरा उनसे घनिष्ठ नाता रहा। मैं एक बार उन्हें हमारे समाज के बड़े संत रूपचंद्र महाराज से मिलाने लेकर गया। उन्होंने देखते ही बोला कि यह तो पिछले जन्म का कोई घोर तपस्वी है। अभी तो कुछ नहीं आगे चलकर इनका गजब भाग्योदय होगा। उनकी बात सुनकर बच्चन साहब बोले, महाराज मैं इस लायक नहीं हूं। मैंने अपने पूरे कैरियर में पचास साठ फिल्में कीं, पर इंडस्ट्री में दो ही आदमी ऐसे देखे जो डायरेक्टर के सामने स्टूडेंट की तरह बैठे रहते थे, एक रजनीकांत दूसरे अमिताभ बच्चन।

    आज का अर्जुन की शूटिंग पूरी होते ही उन्होंने बोफोर्स केस जीता था। तब मैंने उनसे कहा कि अब तो पिक्चर हिट हो ही जाएगी और वही हुआ। इसकी शूटिंग के शुरू में ही मैंने बोल दिया कि अमितजी हमारे सेट पर नॉनवेज नहीं आता है। उन्होंने कहा कि बोकाडिया साहब आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली, आई लव वेज। उनके व्यवहार के बारे में तो मुझे कुछ नहीं बोलना। वे छोटे से छोटे आदमी को भी ऊंचा दर्जा देते हैं। अगर सेट पर 10 मिनट भी देर होती तो आकर अपने को-स्टार, लाइटमैन, कैमरामैन सबको सॉरी बोलते। हम लाल बादशाह की शूटिंग जयपुर में कर रहे थे। उन दिनों चीफ मिनिस्टर भैरो सिंह शेखावत ने आकर अमिताभ को अपने हाथों से साइनिंग अमाउंट दिया था। वहां जब बिल्डिंग के छतों पर चढ़कर लोग अमिताभ को देखने आ गए तो कमिश्नर ने रिक्वेस्ट की सर बिल्डिंग बहुत कमजोर हैं, बड़ी कैजुअल्टी हो जाएगी। इसके बाद अमितजी ने सहर्ष शूटिंग टाल दी।

  4. शूजीत सिरकार

    बच्चन साहब पचास सालों से स्टार बने हुए हैं और वर्तमान दशक में भी वे स्टार हैं, ऐसा इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि बतौर क्रिएटिव पीपल उन्होंने हमेशा खुद को चैलेंज किया है। एक किस्म की मासूमियत आज भी बरकरार है उनमें। 'पीकू' में वे जिस किरदार में थे, उस तरह के बुजुर्ग मेरे परिवार में बहुत रह चुके हैं। खुद अमिताभ सर भी बंगाल में रह चुके हैं तो उन्हें उस किरदार का सुर पता था। उस लुक को डिक्शन भी पकड़ने में उन्हें दिक्कत नहीं हुई।

    ज्यादातर बड़े स्टार्स अपन रोल्स की इमेज के कैदी होकर रह जाते हैं। बच्चन साहब ने कभी खुद को उसका कैदी नहीं होने दिया। मेरी फिल्मों पिंक, पीकू में भी उन्होंने अपने पिछली ब्रैंड इमेजेस को दरकाया। अब गुलाबो-सिताबो में भी वे अलग ही अवतार में नजर आएंगे। हर दशक में वे स्टॉलवर्ट मेकर्स के साथ-साथ नए मेकर्स के संग भी काम करते रहे। यह उनका इरादतन स्टेप रहा है कि उन्हें ऐसे यंग मेकर्स के साथ काम करते रहना है, जो उन्हें अलग अलग अवतारों में पेश करता रहे। पांच मिनट की मीटिंग में उन्होंने पिंक को हां कर दिया था। उनके इस अप्रोच से हमारे जैसे डायरेक्टर्स को और कॉन्फिडेंस मिल जाता है। जब साक्षात महानायक ही एक्सपेरिमेंट करने को तैयार हैं तो मेकर जान लगा देता है। उसका नतीजा इंक्रेडिबल फिल्मों के तौर पर आता है। मौजूदा दशक की बात करें तो उन्होंने हमेशा फ्रंटफुट पर खेला। उनकी सबसे खास बात यह है कि उन्होंने अगर एक बार डायरेक्टर पर ट्रस्ट कर लिया तो वे बाद में फिर कभी डाउट नहीं करते।

  5. इंपोर्टेंट दशक
    70 का दशक (जंजीर, शोले, दीवार, आनंद, त्रिशूल, मुक्कदर का सिकंदर, अमर अकबर एंथोनी, डॉन, कभी-कभी, काला पत्थर समेत कई हिट फिल्में)

    अच्छा साल
    1973 ( इस साल 'जंजीर' ने उनको स्टार के रूप में स्थापित कर दिया।)

    बुरा साल
    1997( 'मृत्युदाता' फ्लॉप रही और एबीसीएल के घाटे में जाने से अमिताभ के सामने फाइनेंशियली क्राइसेस भी आई।)

    इंपॉर्टेंट लम्हा
    1982 में फिल्म 'शक्ति' में दिलीप कुमार के साथ काम करना। खुद अमिताभ ने कहा है कि यह उनके लिए सपना सच होने जैसा था।

    सबसे बड़ा रिकॉर्ड
    फिल्मों में 335 से ज्यादा अवॉर्ड्स अपने नाम किए। फिल्मफेयर में 41 नॉमिनेशन का भी रिकॉर्ड रहा है। 1973 से लेकर 1984 तक हर साल एक गोल्डन जुबली फिल्म दी।



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      Amitabh Bachchan completes five decades in industry, starts with 'Saat Hindustani'

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      November 07, 2019 at 11:08AM
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